बूँदें गिरीं तो आँख में आँसू भी आ गए....,
बारिश का उनकी याद से रिश्ता ज़रूर है..!
जो भी बाज़ार में दम भर को ठहर जाता है
सादा-दिल उस को ख़रीदार समझ लेते हैं
मर्ग [मौत]-ए-आशिक़ पे फ़रिश्ता मौत का बदनाम था
वो हंसी रोके हुए बैठा था जिसका काम था
ऐ बुतो! इस चार दिन के हुस्न पर
ये मिजाज़, इतना मिजाज़, ऐसा मिज़ाज
तुमने आ कर मिज़ाज पूछ लिया
अब तबीयत कहां संभलती है
जब तक था दम में दम न दबे आसमां से हम
जब दम निकल गया तो ज़मीं ने दबा लिया
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